
छत्तीसगढ़ में इन दिनों आरक्षण की सियासत का भूचाल है। विशेष तौर पर अनुसूचित जनजातियों का आरक्षण 32 प्रतिशत से कम होने के बाद राज्य के वनवासी अंचल से लेकर राजधानी तक धरना-प्रदर्शन, चक्का जाम और बैठकों का दौर चल रहा हैं। राज्य की दोनो ही प्रमुख सियासी पार्टियां इस मुद्दें का लाभ लपकने की तैयारी में है। कांग्रेस को जल्दी है कि भानुप्रतापपुर चुनाव से पहले कुछ ऐसा हो जाए जिससे वनवासी समाज का वोट उपचुनाव में कांग्रेस के खिलाफ न जाए।
शायद यही वजह है कि आनन-फानन में शीत सत्र से पूर्व ही विधानसभा का दो दिवसीय विशेष सत्र आहुत कर दिया गया है। उम्मीद की जा रही है कि विशेष सत्र में राज्य की भूपेश सरकार अनुसूचित जनजाति वर्ग का आरक्षण 32 प्रतिशत करने के साथ ही अन्य पिछड़ा वर्ग का आरक्षण भी 27 प्रतिशत करने को लेकर विधेयक लाएगी। वोट बैंक की राजनीति को देखते हुए इसमें जरा भी संदेह नही है कि विधेयक सर्व सम्मति से पास हो जाएगा।
भूपेश बघेल अन्य पिछड़ा वर्ग से आते हैं और उनकी राजनीति की मुख्य धूरी भी पिछड़ा वर्ग की सियासत है। यही वजह है कि उन्होंने राज्य में पहले ही पिछड़ा वर्ग के लिए 27 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान कर दिया था। लेकिन राज्य शासन के करीबी कुनाल शुक्ला ने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर ओबीसी आरक्षण पर रोक लगवा दी। इसे सरकार का ही संरक्षण इसलिए मान लिया गया क्योंकि बाद में राज्य सरकार ने कुनाल शुक्ला को कबीर शोध पीठ के अध्यक्ष का दायित्व दे दिया था।
लेकिन अब एकबार फिर से अनुसूचित जनजाति आरक्षण की सीमा बढ़ाए जाने के साथ ही ओबीसी आरक्षण को भी 27 फीसदी करने को लेकर राज्य सरकार पर दवाब है। ऐसा माना जा रहा है कि राज्य सरकार राज्य विधानसभा के विशेष सत्र में अनुसूचित जनजाति का आऱक्षण 32 प्रतिशत करने के साथ ही ओबीसी का आरक्षण भी 27 प्रतिशत करने के लिए विधेयक प्रस्तुत करेगी।
यदि ऐसा होता है तो यह भूपेश बघेल की राजनीति की एक अहम कड़ी भी होगी। और यदि राज्य सरकार अनुसूचित जनजाति के साथ ही ओबीसी आरक्षण को 2023 के चुनाव तक भी बरकरार रख पाती है तो आनेवाले विधानसभा चुनाव की दृष्टि से भी कांग्रेस काफी मजबूत स्थिति में आ जाएगी। लेकिन देखना दिलचस्प यह होगा कि सियासत का जो गेंद भूपेश बघेल केन्द्र के पाले में फेंकने जा रहे है, राज्यपाल महोदया और केन्द्र का उसपर क्या रूख रहता है। क्योंकि यदि राज्यपाल द्वारा विधेयक पर हस्ताक्षर कर दिया जाता है तो राज्य में कुल आरक्षण 82 फीसदी तक पहुंच जाएगा जो संविधान की सीमा से ज्यादा है।