क्या अपराजिता बिल पर लगेगी राष्ट्रपति की मुहर? इन दो राज्यों को नहीं मिली थी राष्ट्रपति की मंजूरी…
पछिम बंगाल में एंटी रेप बिल पास तो हो गया है, लेकिन ये बिल कानून बनेगा या नहीं ये राष्ट्रपति और राज्यपाल के ऊपर निर्भर करता है
पश्चिम बंगाल के आरजी कर मेडिकल कॉलेज में 8-9 अगस्त की रात ट्रेनी डॉक्टर से रेप-मर्डर केस मामले में न्याय को लेकर एक नया मोड़ आया है । इस घटना के बाद ममता सरकार एंटी रेप बिल लेकर आयी है। जो की अब पश्चिम बंगाल की विधानसभा में पास हो गया है
ममता सरकार में कानून मंत्री मोलॉय घटक ने एंटी रेप बिल पेश किया।और इस बिल को अपराजिता महिला एवं बाल विधेयक (पश्चिम बंगाल आपराधिक कानून एवं संशोधन) का नाम दिया गया है। बात करे अगर बिल की तो इस बिल में रेप के दोषी को 10 दिन में मौत की सजा देने और मामले की जांच 36 दिन में पूरी करने का प्रावधान है।
इस बिल के भीतर रेप और हत्या करने वाले आपराधी के लिए फांसी की सजा का प्रावधान है ,21 दिन में मामले की जांच पूरी करनी होगी.
रेप-गैंग रेप के दोषी को उम्रकैद की सजा दी जाएगी मौजूदा कानून के तहत उम्रकैद की सजा कम से कम सजा 14 साल है। अपराधी की मदद करने पर 5 साल की कैद की सजा का प्रावधान है, कोर्ट की कार्यवाही को प्रिंट या पब्लिश करने से पहले इजाजत लेनी होगी। अगर ऐसा नहीं किया तो जुर्माने के साथ 3 से 5 साल की सजा का प्रावधान रखा गया है। रेप के साथ ही एसिड अटैक भी उतना ही गंभीर अपराध होगा, और इसके लिए आजीवन कारावास की सजा का प्रावधान है,
अब बात करते हैं की ये बिल कानून कैसे बनेगा
इस बिल को पश्चिम बंगाल विधानसभा में रूलिंग पार्टी तृणमूल कांग्रेस और विपक्ष दोनों का समर्थन प्राप्त हुआ है, लेकिन इसे लागू करने के लिए राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और राज्यपाल की मंजूरी की आवश्यकता होगी। । वहीं राष्ट्रपति केंद्रीय मंत्री परिषद के सलाह पर काम करते हैं। जिसके बाद अब केंद्र यह तय करेगा कि यह बिल कानून बने या नहीं।
हालांकि, इस विधेयक को पश्चिम बंगाल में भाजपा का समर्थन प्राप्त है लेकिन केंद्र में बीजेपी नीत एनडीए गठबंधन की सरकार है। अगर ये सिर्फ भाजपा की सरकार होती तो पश्चिम बंगाल में समर्थन मिलने के बाद ये बिल केंद्र में भी पास हो जाता, जैसा की आप सबको पता है की लोकसभा में तृणमूल कांग्रेस और बीजेपी एक दूसरे के विरोधी हैं इसलिए अपराजिता बिल को हरी झंडी मिलने की संभावना कम है। आपको बता दे की इससे पहले भी आंध्र प्रदेश और महाराष्ट्र विधानसभाओं ने भी बलात्कार और गैंगरेप मामलों में मौत की सजा का प्रावधान किया था, लेकिन इनको भी राष्ट्रपति की मंजूरी नहीं मिली है।
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