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पिता का साया उठ जाने के बाद सर पर थी 7 सदस्यों की जिम्मेदारी..गांव में ही रहकर ढूंढ रही थीं रोज़गार, मनरेगा ने बदल दी फूलमती की जिन्दगी..

2 वर्षों से मेट के रूप में निभा रही जिम्मेदारी

मनरेगा (महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम) कई मायनों में लोगों की जिंदगी बदल रही है। हम बात कर रहे है बीजापुर की रहने वाली 24 साल की युवती फूलमती की.. फूलमती का भी जीवन मनरेगा ने कई अर्थों में बदल दिया है। पिता का साया उठ जाने के बाद सर पर 7 सदस्यों की जिम्मेदारी थी. फूलमती गांव में ही रहकर रोज़गार ढूंढ रही थीं, आखिर
मनरेगा ने फूलमती की जिन्दगी बदल दी…
कोडोली पंचायत की इस सीधी-सादी युवती के हाथों में गांव में मनरेगा कार्यों में श्रमिकों को कार्य आबंटन और उनसे कार्य कराने की महती जिम्मेदारी है। वह पिछले दो वर्षों से मेट की जिम्मेदारी बखूबी निभा रही है।

अल्प आयु में ही फूलमती के सिर से पिता का साया उठ गया था, और फिर सात सदस्यों वाले बड़े परिवार की जिम्मेदारी उस पर और उसके बड़े भाई पर आ पड़ी थी। बारहवीं तक पढ़ाई कर चुकी फूलमती इन परिस्थितियों में गांव में ही रहकर रोज़गार ढूंढ रही थीं, ताकि घर के सदस्यों का भी ध्यान रख सके। वह मनरेगा के अंतर्गत चलने वाले कार्यों में मजदूरी करने जाती थी। इसी दरम्यान ग्राम पंचायत सचिव श्री राममूर्ति से उसे यह जानकारी मिली कि पढ़ी-लिखी लड़कियों को गोदी की नाप और कार्य कराने के लिए मेट रखा जाता है।

फूलमती ने इसके बाद साल 2019 से ग्राम रोजगार सहायक सुश्री कमलदई नाग के मार्गदर्शन में मेट का काम सीखना शुरू किया। अपनी लगन से थोड़े दिनों में ही वह मेट के काम में दक्ष हो गई। भैरमगढ़ जनपद पंचायत में मेटों के लिए आयोजित विशेष प्रशिक्षण में फूलमति ने दो सप्ताह का प्रशिक्षण भी हासिल किया, जिसने उसकी कार्यकुशलता बढ़ाई। प्रशिक्षण के बाद अब वह कार्यस्थल पर श्रमिकों का बेहतर तरीके से प्रबंधन कर पाती है।

प्रशिक्षण में नागरिक सूचना पटल के निर्माण और जॉब-कार्ड अद्यतनीकरण के बारे में भी उसे काफी कुछ जानने को मिला। मनरेगा को जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा मानने वाली फूलमती अपने बीते दिनों को याद करते हुए बताती है कि उन्होंने इससे मिले पारिश्रमिक को जोड़कर 23 हजार रुपए इकट्ठा करके रखे थे और जब घर की मरम्मत का काम चल रहा था, तब उन रुपयों से घर बनाने मे अपना योगदान दिया।

कोडोली में ग्राम रोजगार सहायक और मेट, दोनों के महिला होने का फायदा गांव की महिलाओं को मिल रहा है। इनके मिलनसार व्यवहार के चलते पिछले तीन सालों में मनरेगा कार्यों में महिलाओं की भागीदारी 50 प्रतिशत से अधिक रही है। वित्तीय वर्ष 2019-20 में 277 महिलाओं ने काम करते हुए 7658 मानव दिवस, 2020-21 में 329 महिलाओं ने 11 हजार 684 मानव दिवस और चालू वित्तीय वर्ष 2021-22 में सितम्बर माह तक 268 महिलाओं ने 5299 मानव दिवस का रोजगार प्राप्त किया है।

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