कैंसर के कारण पत्नी का गर्भाशय निकलवाना जिसकी वजह से गर्भधारण न कर पाना पति के प्रति क्रूरता नहीं, HC की अहम टिप्पणी
तमिलनाडू। डिम्बग्रंथि के कैंसर का पता चलने के बाद एक विवाहित महिला का गर्भाशय निकलवाना, जिसकी वजह से गर्भधारण न कर पाना पति के प्रति ‘मानसिक क्रूरता’ नहीं है। मद्रास हाईकोर्ट के जस्टिस आरएमटी टीका रमन और जस्टिस पीबी बालाजी ने यह टिप्पणी देते हुए फैमिली कोर्ट के उस आदेश को बरकरार रखा, जिसने मानसिक क्रूरता, परित्याग के आधार पर शादी खत्म करने की मांग वाली पति की याचिका खारिज कर दी थी।
हाईकोर्ट में पति ने कहा कि उसकी पत्नी ने अपने स्वास्थ्य के बारे में महत्वपूर्ण तथ्य छिपाए थे। उनकी पत्नी का गर्भाशय निकाले जाने के बाद बच्चे पैदा करने में असमर्थता हिंदू विवाह अधिनियम के तहत मानसिक क्रूरता है। पति ने इसके क्रूरता मानते हुए फैमिली कोर्ट में तलाक की मांग की। फैमिली कोर्ट ने अर्जी खारिज की। तो पति हाईकोर्ट पहुंच गया।
हाईकोर्ट ने कहा कि फैमिली कोर्ट का फैसला सही है क्योंकि महिला को उसकी शादी के बाद कैंसर का पता चला था। शादी से पहले उसमें कोई लक्षण नहीं थे और इसलिए, ये नहीं कहा जा सकता कि उसने अपनी बीमारी को छिपाया।
हाईकोर्ट ने कहा “पत्नी कैंसर सर्वाइवर है। वो कैंसर की खतरनाक बीमारी के क्रूर प्रयासों से बच गई है। हालांकि, कैंसर से लड़ने के लिए इलाज के दौरान, चिकित्सीय आधार पर और आपात्कालीन और जीवन-घातक स्थिति के कारण डॉक्टर ने उसका गर्भाशय हटा दिया और इसकी सूचना पति को भी दे दी गई। ऐसी परिस्थिति में, हम पाते हैं कि केवल विवाह के निर्वाह के दौरान, पत्नी कैंसर से पीड़ित थी जिसके परिणामस्वरूप गर्भाशय को हटा दिया गया था। इस आधार पर पति तलाक नहीं ले सकता। ये क्रूरता नहीं है।”