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Madhya Pradesh: विधायक नहीं लड़ सकेंगे चुनाव, बेटे-पत्नी कर रहे दावेदारी

इंदौर, विधानसभा चुनाव में मामूली अंतर के साथ प्रदेश की सत्ता पर काबिज हुई कांग्रेस और 3-4 सीटों की कमी से सत्ता से दूर हुई भाजपा लोकसभा चुनाव में विधायकों को लोकसभा का टिकट देने की इच्छुक नहीं है। ऐसे में अब विधायकों ने अपने परिजन के नाम आगे बढ़ाना शुरू कर दिए हैं। कांग्रेस के 3 विधायकों के परिजन लोकसभा क्षेत्रों में सक्रिय हो गए हैं। जिन सीटों पर मजबूत चेहरा राजनीतिक दलों को नहीं मिला वहां रणनीतिकार विधायकों के परिजन को मौका दे सकते हैं।

इंदौर लोकसभा क्षेत्र में टिकट के मामले में इस बार कांग्रेस नया प्रयोग कर सकती है, लेकिन विधानसभा चुनाव में बड़े नेताओं के परिजन को टिकट देने का फॉर्मूला सफल साबित होने के बाद जनप्रतिनिधि यह उम्मीद लगाए बैठे हैं कि उनके परिजन को भी टिकट मिल सकता है। राऊ से दूसरी बार चुनाव जीत कर प्रदेश सरकार में मंत्री बने जीतू पटवारी की पत्नी रेणू पटवारी का नाम लोकसभा के लिए चर्चाओं में है।

दो दिन पहले धन्वंतरि नगर में एक बड़ा आयोजन किया। इसके अलावा राऊ विधानसभा में एक भागवत कथा में भी वे सक्रिय रही। विधानसभा चुनाव में अपने पति के लिए रेणू हमेशा जनसंपर्क करती रही है, लेकिन इस बार वे खुद के लिए सक्रिय नजर आ रही हैं। उधर मंत्री पटवारी भी शहर के सार्वजनिक कार्यक्रमों में बढ़-चढ़कर हिस्सा ले रहे हैं। गत दिनों हुकमचंद मिल के श्रमिकों के बीच भी उन्होंने बड़ी घोषणाएं कीं।

उज्जैन संसदीय क्षेत्र

उज्जैन संसदीय क्षेत्र से इस बार मंत्री तुलसीराम सिलावट के बड़े बेटे नितिश लोकसभा के लिए दावेदारी कर रहे हैं। बेटे के लिए सिलावट ने भी लॉबिंग शुरू कर दी है। डेली कॉलेज से पढ़े नितिश भी उज्जैन में पिछले तीन माह से सक्रिय हैं। शिवरात्रि पर होने वाले आयोजन में ‘छोटे सिलावट” ने शिरकत की। मंत्री सिलावट ने भी पिछले दिनों उज्जैन में एक बड़ी रैली निकाली थी। उनके दौरे भी उज्जैन संसदीय क्षेत्र में बढ़ गए हैं।

देवास संसदीय क्षेत्र से दावेदारी

पीडब्ल्यूडी मंत्री सज्जन सिंह वर्मा के बेटे पवन वर्मा की भी देवास संसदीय क्षेत्र से दावेदारी मजबूत मानी जा रही है। विधानसभा चुनाव के बाद से ही पवन क्षेत्र में सक्रिय हो गए हैं। मंत्री वर्मा सांसद रह चुके हैं और लोकसभा चुनाव के मद्देनजर उनके दौरे भी देवास, आगर, शाजापुर में बढ़ गए हैं। 9 साल पहले मंत्री वर्मा विधायक थे। पार्टी ने उन्हें लोकसभा का टिकट दिया था। वे चुनाव जीत गए थे। उसके बाद उपचुनाव में उन्होंने अपने ही एक रिश्तेदार को टिकट दिलवाया था, लेकिन तब भाजपा के उम्मीदवार राजेंद्र वर्मा चुनाव जीते थे।

इसलिए नहीं लड़ सकते विधायक लोस चुनाव

विधानसभा चुनाव में किसी भी दल को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला था। सरकार बनाने के लिए 115 सीटों की आवश्यकता थी और कांग्रेस के पास 114 सीटें थी, जबकि भाजपा के पास 109 सीटें थीं। कांग्रेस को निर्दलीय विधायकों ने भी समर्थन दे दिया था। अब यदि लोकसभा चुनाव में राजनीतिक दल विधायकों को उम्मीदवार बनाते हैं और तो उन्हें विधानसभा सीट रिक्त करना होगी और उपचुनाव होने की स्थिति में प्रदेश के राजनीतिक हालत अस्थिर हो सकते हैं।

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