केरल हाई कोर्ट ने सोमवार को पॉक्सो कानून से जुड़े केस से एक महिला अधिकार कार्यकर्ता को आरोपमुक्त कर दिया। कोर्ट ने कहा कि नग्नता को अश्लील या अनैतिक करार देना गलत है। नग्नता को सेक्स के साथ नहीं जोड़ा जाना चाहिए। नग्नता और अश्लीलता हमेशा पर्यायवाची नहीं होते।
महिला अधिकार कार्यकर्ता रेहाना फातिमा का विडियो सामने आया था, जिसमें उन्होंने नाबालिग बच्चों को अपने अर्धनग्न शरीर पर पेंटिंग करने की अनुमति दी थी। अभियोजन पक्ष ने इसे अश्लील बताया था।
हाई कोर्ट ने कहा कि किसी के लिए यह तय करना संभव नहीं है कि इस मामले में बच्चों का यौन संतुष्टि के लिए उपयोग हुआ हो। उन्होंने अपने शरीर को बस ‘कैनवास’ के रूप में इस्तेमाल करने दिया था। अदालत ने कहा, महिलाओं को अपने शरीर के बारे में फैसले लेने का पूरा अधिकार है। निर्दोष कलात्मक अभिव्यक्ति को यौन क्रिया से जोड़ना क्रूर है।
जस्टिस कौसर एदाप्पागथ ने कहा कि 33 साल की महिला कार्यकर्ता के खिलाफ लगाए गए आरोपों के आधार पर किसी के लिए यह तय करना संभव नहीं है कि बच्चों का किसी भी रूप से यौन संतुष्टि के लिए उपयोग हुआ हो। उन्होंने बस अपने शरीर को ‘कैनवास’ के रूप में अपने बच्चों को ‘चित्रकारी’ के लिए इस्तेमाल करने दिया था। अदालत ने कहा, अपने शरीर के बारे में फैसले लेने का अधिकार महिलाओं की समानता और निजता के मौलिक अधिकार के मूल में है।