अंबिकापुरछत्तीसगढ़

हसदेव अरणय में फिर पेड़ों की अंधाधुंध कटाई शुरू, हाथों में डंडा व अन्य हथियार लेकर विरोध में उतरे ग्रामीण

रोमी सिद्दीकी/सरगुजा। छत्तीसगढ़ के अंबिकापुर स्थित परसा कोल माइंस के लिए एक बार फिर हसदेव अरण्य में पेड़ों की कटाई शुरू हो गई है जिसे लेकर ग्रामीण प्रशासन से टकराव की मुद्रा में आ गए हैं। पुलिस फोर्स की मौजूदगी में सोमवार को लगभग 50 से 60 पेड़ काट दिए गए हैं। इसके बाद ग्रामीण विरोध में उतर आए हैं। हाथों में लाठी-डंडे लिए बड़ी संख्या में ग्रामीण और महिलाएं एकजुट होकर फोर्स के सामने पहुंच गए। इसक बाद कटाई रोक दी गई है। जंगल का इलाका छावनी में बदल गया है। प्रदर्शनकारियों की ड्रोन से निगरानी की जा रही है।

दरअसल, प्रशासन ने एक बार फिर हसदेव के जंगलों में पेड़ों की कटाई की शुरू कराई है। बताया जा रहा है कि सोमवार सुबह से ही कोल खदान प्रभावित घाटबर्रा के पेंड्रामार जंगल में बड़ी संख्या में पुलिस बल को तैनात कर पेड़ों की कटाई शुरू करा दी। जब तक इसका पता ग्रामीणों को चला, तब तक 50-60 पेड़ काटे जा चुके थे। इसके बाद ग्रामीण जंगल में एकत्र हो गए और नारेबाजी करने लगे। ग्रामीणों के रुख को देख पुलिस को पीछे हटना पड़ा।

इसके बाद पेड़ों की कटाई को रोक दिया गया। हालांकि जंगल में अभी भी ग्रामीण डटे हुए हैं। वह बिना फोर्स के जाए, वहां से हटने को तैयार नहीं हैं। प्रदर्शनकारियों में बड़ी संख्या महिलाओं की भी है। छत्तीसगढ़िया क्रांति सेना के प्रदेश अध्यक्ष अमित बघेल भी ग्रामीणों के समर्थन में मौके पर पहुंचे। वहीं एडिशनल SP विवेक शुक्ला, SDM अंबिकापुर प्रदीप साहू, SDM उदयपुर अनिकेत साहू सहित पुलिस फोर्स मौके पर डटी हुई है।

प्रशासन और पुलिस की ओर से घाटबर्रा के जंगल में दो ड्रोन कैमरे भी चलाए जा रहे हैं। इसके जरिए आंदोलनकारियों पर नजर रखी जा रही है। हालांकि ग्रामीण पीछे हटने को तैयार नहीं हैं। पुलिस बल भी ग्रामीणों के सामने खड़ा है। पेड़ों की कटाई के लिए दर्जनों स्वचालित मशीन मौके पर रखी गई हैं। जिससे दो से तीन मिनट में बड़े-बड़े पेड़ों को काटा जा सके। ग्रामीणों का कहना है कि इसी जंगल पर उनकी आजीविका निर्भर है। वह खदान नहीं खुलने देंगे।

उदयपुर क्षेत्र के हरिहरपुर, फतेहपुर और साल्ही ग्राम पंचायत के लोग खदान खोलने का साल 2019 से विरोध कर रहे हैं। प्रधानमंत्री से लेकर राष्ट्रपति और मुख्यमंत्री को ग्रामीण लिख चुके हैं। यहां के ग्रामीण 300 किलोमीटर पैदल चलकर राज्यपाल से मिलने भी गए थे, लेकिन इसके बाद भी सुनवाई नहीं हुई। इस पर 2 मार्च से साल्ही गांव में प्रदर्शन कर रहे थे। इसी बीच कोल माइंस को अनुमति मिल गई। एक महीने पहले वहां खनन के लिए कैंप लगाया गया था।

उदयपुर क्षेत्र में पहले से परसा ईस्ट बासेन कोल माइंस चल रहा है। इसके लिए 640 हेक्टेयर जमीन का अधिग्रहण किया गया है। यहां 2028 तक खनन करना था, लेकिन उससे पहले ही खनन कर लिया गया और इस खदान के सेकंड फेज के लिए अनुमति मिल गई है। यहां घाटबर्रा गांव में आधे लोग खदान के पक्ष में तो आधे विरोध में हैं।

12 सौ हेक्टेयर में खुलेगी खदान, 30 साल चलेगी

राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादक निगम लिमिटेड के लिए अडानी कोयला माइनिंग करेंगी और यहां इससे 12 सौ हेक्टेयर जमीन खदान में जा रही है। इसमें 841 हेक्टेयर जंगल साफ हो जाएगा। वहीं चार गांव के 1 हजार लोग यानी 250 परिवार विस्थापित हो जाएंगे। वहीं 30 सालों तक प्रति वर्ष यहां से पांच मिलियन टन कोयला निकालने की तैयारी है।

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