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विद्यार्थियों के हित में रायपुर के 48 गैर मान्यता प्राप्त स्कूलों के खिलाफ NSUI ने खोला मोर्चा, जारी किया जियोटैग फोटो…

रायपुर : भारतीय राष्ट्रीय छात्र संगठन (NSUI) हमेशा छात्रों के हितों के लिए संघर्ष कर रहा हैं एनएसयूआई ने लगातार राजधानी में गली मोहल्ले में ऐसे अनेक गैर मान्यता स्कूल चलाया जा रहा है जिसका विरोध और सरकार से उचित करवाई की मांग कर रहा है ।एनएसयूआई लगातार इसकी सूचना कारवाई के लिए जिला शिक्षा अधिकारी को देते रहा है पर जिला शिक्षा अधिकारी द्वारा कोई कारवाई नही किया जाता है । हेमंत पाल का कहना है लगातार रायपुर जिला शिक्षा अधिकारी मौन है प्राथमिक शिक्षा देने वाले गैर-मान्यता प्राप्त अशासकीय विद्यालयों एवं मानकों का पालन नहीं किया जा रहा है । वही एनएसयूआई ने रायपुर के 48 विद्यालयों की जियोटैग फोटो की प्रति विचार करने हेतु सादर प्रस्तुत किया हैं।

इस प्रेस-विज्ञप्ति को जारी कर सभी जिम्मेदार अधिकारियों, अशासकीय स्कूल के प्रबंधको, शिक्षकों एवं अभिभावकों से छात्रों के हित में सहयोग की अपेक्षा करते हुए सूचित करना चाहता हैं ।

गैर मान्यता प्राप्त स्कूलों की लिस्ट देखने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें

पांच मुख्य बिंदुओं पर है ।

1. रायपुर जिले में अशासकीय विद्यालय को नर्सरी से लेकर कक्षा-8वी तक की कुल 11 कक्षाओं तक को चलाने की मान्यता देने का अधिकार RTE कानून में जिला शिक्षा अधिकारी रायपुर को हैं, क्या उन विद्यालयों में कुल 11 कक्षा और 11 शिक्षक भी हैं, नहीं है तो उन स्कूलो से बालको को किस स्तर की शिक्षा मिलेगी? फिर ऐसे स्तरहीन शिक्षा देने वाले विद्यालयों को मान्यता देने की क्या वज़ह हैं? यह विद्यालय संविधान के अनुच्छेद 21A एवं RTE के तहत 8वी तक की अनिवार्य और क्वालिटी वाली शिक्षा देने के लिये कैसे उपयुक्त पाए गए?

2. ऐसे अशासकीय विद्यालय जिनमें खेल का मैदान ही नहीं हैं ऐसे विद्यालयों में बालकों का शारीरिक और मानसिक विकास कैसे होगा? जब RTE कानून में 2009 से यह अनिवार्य है और सर्वोच्च न्यायालय ने भी बिना खेल के मैदान के स्कूल नहीं साफ़ कर दिया है, तो ऐसे विद्यालयों को चलाने की मान्यता और लगातार मान्यता का नवीनीकरण जिला शिक्षा अधिकारी रायपुर क्यों दे रहे हैं? क्या बच्चों के बचपन को दुकानदारी चलाने वालों ने किताबों-बस्तो के बोझ में दबा नहीं दिया हैं?

3. बहुत से विद्यालय गली-मोहल्लों में 2-3 फ्लोर में 8-12 वर्ग मीटर वाले 2 से 5 कमरो के घरों को किराए में लेकर चलाए जा रहे हैं जिन बिल्डिंग डिजाइन को लोकल अथॉरिटी से केवल रहने के लिए स्वीकृत किया है क्या उसमे 200 बच्चों तक को भेड़-बकरियों की तरह भरा जाना सुरक्षित हैं? जबकि स्कूलों के भवन में कम से कम दो चौड़े बैरीयर-फ्री मार्ग, क्रॉस वेन्टीलेशन वाले हवादार कक्ष, सुरक्षित सीडियां, दिव्यांग के अनुकूल पहुच व प्रसाधन, लड़कों-लड़कियों के लिए पृथक टॉयलेट-यूरीनल, परिसर के सीमा में पक्के बाउंड्रीवाल इत्यादि होना अनिवार्य है, प्रत्येक विद्यालय के कक्षाओ मे 1 वर्गमीटर प्रति बालक जगह की उपलब्धता होना, शुद्ध पेयजल की सुविधा, खेल का समान, लाइब्रेरी, भंडार-टीचर-प्राध्यापक के कक्ष होना चाहिएI फिर ऐसे मानकों के बिना संचालित दोयम दर्जे के अशासकीय विद्यालयों को रायपुर के उन क्षेत्र मे खोलने की अनुमति देना जहां मानक अधोसंरचना वाले शासकीय विद्यालय है यही नही जिला शिक्षा अधिकारी रायपुर ने तो पूरे शहर मे ऐसे विद्यालयो को कुकुरमुत्ता की तरह फैला दिया हैं, क्यों?

4. ऐसे विद्यालय जिसे अग्निशमन विभाग स्कूल संचालन के लिए सुरक्षित भवन होने का कतई प्रमाणपत्र नहीं देगा, चुकीं कई भवनों के पास से बिजली के तार गुजर रहे है, बिल्डिंग डहने या आगजनी में बालकों का सुरक्षित निकलना तो दूर निकालना भी सम्भव नहीं है, कई भवन इतने तंग गालियों में है कि फायर ब्रिगेड की गाड़ी पहुंचना भी सरल नहीं हैं, विद्युत कनेक्शन और वायरिंग का स्तर भी घरेलू किस्म का हैं। जब दिल्ली-गुजरात के कोचिंग में आगजनी से बड़े बालक और वयस्क सुरक्षित बच के नहीं निकल पाए तो 3 से 14 साल के बालको का जीवन जोखिम में बने रहने वाले विद्यालयों को मान्यता देने का क्या औचित्य हैं?

5. छोटे बालकों को केवल अकस्मात दुर्घटना से ही नहीं अन्य सम्भावित खतरे भी होते हैं जैसा रायपुर के बड़े विद्यालयों में पास्को के मामले के रुप मे सामने आ चुका हैं फिर भी विद्यालयों में शिक्षकों के अलावा अन्य कर्मचारियों के पुलिस वेरीफिकेशन के बिना, बिना CCTV कैमरे की स्ट्रीमींग के विद्यालय चलाए जा रहे है। यही नहीं बच्चों के पालकों को अंग्रेज़ी और CBSE स्तर की शिक्षा देने का दावा किया जाकर बिना CBSE मान्यता के भारी फीस वसूले जाते हैं। जबकि शिक्षकों की योग्यता उनकी अन्ग्रेजी में समझ और शिक्षा उनके सामर्थ्य पर सवाल खड़े करता हैं लेकिन फिर भी फर्जी ब्यौरे देकर मान्यता लेने और देने वालों के कारण बच्चों को क्या वहा बेसिक और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा मिल सकेगी? यदि नहीं तो इन्हें प्रतिपूर्ति देने की जगह SAGES जैसे शासकीय विद्यालयों में उस रकम से संविदा में शिक्षकों की पर्याप्त नियुक्ति क्यों नहीं की जाती हैं?

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