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अंतागढ से बंडापाल राशन लेकर पहुंची ललिता

छोटे वाहन से 170 किलोमीटर का दुर्गम सफर, धुर नक्सली इलाका

 

पाखंजुर से बिप्लब कुण्डू की ग्राउंड रिपोर्ट 

 

पखांजुर। -टाटा मैजिक वाहन में बैठी यह महिला (women) कुुल लोगो से बात कर रही है। यह महिला अंतागढ़ आदर्श कन्या आश्रम में अधीक्षिका के पद पर पदस्थ है। इनका नाम  ललिता रंगारी है।.जो आश्रम में पढ़ने  वाले बच्चों ( students )  के लिए सूखा राशन  (  Dry ration) अंतागढ़ से 80 किलोमीटर दूर बंडापाल (Bundapal) गांव पहुंची है।

  अंतागढ  से  बंडापाल राशन लेकर पहुंची ललिता
अंतागढ से बंडापाल राशन लेकर पहुंललिताए

कैसे  जाते हैं बंडापाल

बंडापाल गांव तक जाने के लिए आपको तीन जिलों के सरहद से होकर गुजरना पड़ता है। कांकेर (Kanker) जिले के रावघाट से होते हुए नारायणपुर जिला,नारायणपुर जिले के एडका होते हुए,कोंडागांव जिले के आमारस गांव होते हुए पुनः कांकेर जिले बंडापाल गांव पहुँचते है।

 

  अंतागढ  से  बंडापाल राशन लेकर पहुंची ललिता
अंतागढ से बंडापाल राशन लेकर पहुंची ललिता

धुर नक्सलवाद प्रभावित  इलाका

यह क्षेत्र धुर नक्सल प्रभावित क्षेत्र है । जहां नक्सलियों की तूती बोलती है। सुनसान सड़क और पगडंडियों से होते हुए आखिर कार हम बंडापाल पहुँच ही गए.। आश्रम में रहकर पढ़ने  वाली छात्रा के घर पहुंच कर शिक्षिका ललिता रंगारी और आश्रम में कार्यरत उनके सहयोगी द्वारा सूखा राशन उनके परिजन को दिया गया।

 

समस्या  भाषा  समझने की

क्षेत्र नक्सल प्रभावित है और यहां के अधिकतर आदिवासी गोंडी भाषा बोलते है। इसके चलते शिक्षा विभाग के संकुल समन्यवक  मणि ध्रुव  जो गोंडी भाषा के अच्छे जानकार है और क्षेत्र के चप्पे चप्पे स्व परिचत है उनकको साथ लिया गया। सूखा राशन बाँटने में उन्होंने भरपूर साथ दिया।

क्या है सरकारी  आदेश

शासन प्रशासन ने निर्देश दिया है कि स्कूल में पढ़ने बच्चों का मध्याह्न भोजन उनके घर तक पहुंचाना है। ,ऐसे में अपनी परवाह न करते हुए इन नक्सल प्रभावित क्षेत्र में घुस कर बच्चो तक राशन पहुंचाना एक बड़ा चैलेंज था…जिसे बखूबी निभाया गया।

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