नई दिल्ली। दिल्ली-एनसीआर में प्रदूषण के लगातार बढ़ने लगा है। अब दिल्ली सरकार प्रदूषण पर नियंत्रण के लिए 20 और 21 नवंबर को पहली बार आर्टिफिशियल बारिश होगी। यानी हवाई जहाज से बादलों में केमिकल डालकर क्लाउड सीडिंग की जाएगी। फिर वही बादल बारिश के रूप में राजधानी की जमीन पर बरसेंगे। बारिश कराने का जिम्मेदारी IIT Kanpur की है।
क्या है आर्टिफिशियल रेन यानी कृत्रिम बारिश?
कृत्रिम बारिश के लिए वैज्ञानिक आसमान में एक तय ऊंचाई पर सिल्वर आयोडाइड, ड्राई आइस और साधारण नमक को बादलों में छोड़ते हैं। इसे क्लाउड सीडिंग कहते हैं। इसके जरूरी है कि आसमान में कम से कम 40 फीसदी बादल हों। जिनमें थोड़ा पानी मौजूद हो। दिक्कत ये है कि नवंबर में राजधानी के ऊपर बादलों की मात्रा कम रहती है। इसलिए क्लाउड सीडिंग में प्रॉब्लम आ सकती है।
क्लाउड सीडिंग में आने वाली समस्या
क्लाउंड सीडिंग तभी संभव हो पाएगा, जब आसमान में 40 फीसदी बादल हों। उन बादलों में पानी यानी लिक्विड की मात्रा हो। जरूरी नहीं कि इसके लिए विमान से बादलों के बीच उड़ान भरी जाए। यह काम बैलून या रॉकेट से भी किया जा सकता है। लेकिन इसके लिए बादलों का सही सेलेक्शन जरूरी है। सर्दियों में बादलों में पर्याप्त पानी नहीं होता। सर्दियों में इतनी नमी नहीं होती कि बादल बन सके। मौसम ड्राई होगा तो पानी की बूंदे जमीन पर पहुंचने से पहले ही भांप बन जाएंगी।
इस बारिश से प्रदूषण कितना कम होगा
अभी तक इस बात के वैज्ञानिक प्रमाण नहीं मिले हैं कि इस तरह की बारिश से प्रदूषण कम होगा या नहीं या फिर कितना कम होगा। असल में क्लाउड सीडिंग के लिए छोटे सेसना या उसके जैसे विमान से सिल्वर आयोडाइड को हाई प्रेशर वाले घोल का बादलो में छिड़काव करना होता है। इसके लिए विमान हवा की दिशा से उल्टी दिशा में उड़ान भरता है। सही बादल से सामना होते ही केमिकल छोड़ दिया जाता है। इससे बादलों का पानी जीरो डिग्री सेल्सियस तक ठंडा हो जाता है। जिससे हवा में मौजूद पानी के कण जम जाते हैं। कण इस तरह से बनते हैं जैसे वो कुदरती बर्फ हों। इसके बाद बारिश होती है। लेकिन इसके कई तरह के परमिशन की जरूरत होती है।