दिनेश गुप्ता, नारायनपुर। नक्सल गलियारों की पहचान बदलने में लगे कुछ जुनूनी युवाओं की टीम प्रति माह जिले के दूरस्थ पहुंचविहीन ग्रामीण क्षेत्रों में अपनी उपस्थिति दर्ज कराकर अब तक अछूते रहे ग्रामीणों को देश की मुख्यधारा से जोड़ने के काम मे लगे हुए हैं। यद्यपि इनकी प्रेरणा का स्रोत भारतीय अर्धसेंना का एक ऐसा संवेदनशील और जिम्मेदार अधिकारी है। जिसने अपने काम से न केवल नक्सलियों से लड़ाई जीती है बल्कि क्षेत्र के बहुतेरे लोगां का दिल भी जीता है।
सोशल मीडिया के विभिन्न मंचो ने इस सख्शियत की अपनी अलग पहचान बन चुकी है। बनिस्पत देश की सुरक्षा में लगा यह अर्धसैनिक अधिकारी बस्तर में बदलाव की चाह रखने वाले अनेकों युवाआें का प्रेरणा स्रोत बना हुआ है। आम तौर पर एक सुरक्षाकर्मी या अधिकारी बस्तर जैसे हिंसा ग्रस्त क्षेत्र में अपने जीवन काल मे सिर्फ एक बार ही आना चाहता है। फिर भी इस मिथक को तोड़ते हुए विशेष अनुरोध पर अपनी दूसरी पोस्टिंग भी वापस बस्तर के नरायनपुर जिले में करवा ली।
नक्सल प्रभावित वनग्रामों में कैम्प
इसी सेवा भावना से प्रेरित होकर नरायनपुर के कुछ जुनूनी युवाआें ने जिले के नक्सल प्रभावित वनग्रामों में कैम्प लगाकर लोगां से सीधे जुड़ने का प्रयास करना प्रारम्भ कर दिया। इस कार्य को उन्होंने अभियान के रूप में बदलते हुए जिले के उन अछूते एवं पिछड़े इलाकों में स्वास्थ्य, शिक्षा और स्वच्छता के प्रति स्थानीय लोगों को जागरूक करने लग गए है, जहां विभिन्न कारणों से सरकारी मदद या अमला नही पहुंच पाता है।
इस क्रम में उन्होंने आपस में यह तय किया कि वे प्रत्येक महीने जिले के किसी न किसी पहुंच-विहीन नक्सल हिंसा ग्रस्त गांवों में कैम्पिंग करेंगे। ये युवा बीते तीन महीनों में तीन अलग-अलग गांवो में जाकर इस अभियान को आगे बढाने में लगे हैं। इस क्रम में युवा इस बार दिनांक 15 मार्च 2019 को नरायनपुर जिला मुख्यालय से करीब 20 किमी दूर पहुंचविहीन गांव बमहिनी से 3 किमी और आगे महज 2 सौ की आबादी वाले नक्सल प्रभावित गांव मेटाडोंगरी पहुंचे।
गांव के दूषित क्षेत्रों की साफ-सफाई
हर बार की तरह इस बार भी वे खुद ग्रामीणों के बीच वालेंट्रीयर्स का काम करते हुए गांव के दूषित क्षेत्रों की साफ-सफाई करने में जुट गए। इसके अलावा ग्रामीणों को भोजन और पेयजल की स्वच्छता के विषय मे समझाया। गांव के गली मोहल्लों की साफ-सफाई करने के बाद, ग्रामीणों के बीच चौपाल लगाकर पूरी सफाई से खुद लगकर भोजन बनवाया। इसके बाद उपस्थित ग्रामीणों को शिक्षा का महत्व बताया उन्हें शिक्षा सामग्रियां वितरित की। जबकि महिलाओं को साड़ियों सहित बच्चों में चाकलेट्स और बिस्किट्स बांटे। फिर चौपाल में ही ग्रामीणों के बीच भोजन किया।
ततपश्चात ग्रामीणों को समझाइश दी कि वे मौसमी और संक्रमित बीमारियों का इलाज सरकारी अस्पतालों में या डाक्टरों से करवाएं। वैद्य और गुनिया के इलाज से बीमारियां ठीक नही होती उलट उसका बुरा असर शरीर और पड़ता है। इस तरह आपसी परिचर्चा में ग्राम मेटाडोंगरी के ग्रामीणों से उनकी दूसरी समस्याओं को जाना। जिसे अपनी तरफ से जिला प्रशासन के समक्ष रखने के वायदों के सांथ यहां आए युवाओं ने करीब 5-6 घण्टे बिताने के बाद ग्रामीणों से विदाई ली।
वहीं होली त्योहार के पहले युवाओं के द्वारा किये गए इस सेवा कार्य को लेकर लोग मुक्त कंठ से उनकी प्रसंशा करते दिखे। बहरहाल मेटाडोंगरी पहुंचने वाले युवा वालेन्टियरों जिनमें शशांक तिवारी, अजय सरकार, विनय ओस्तवाल, अर्जुन सुराना, सुरेश गुप्ता, प्रमोद वर्मा, असीस दुबे ने इस गांव में सफल कैम्पिंग के लिए ग्राम सरपंच चैतराम, सचिव दस्मती केमति, शिक्षिका ठाकुर का हृदय से आभार व्यक्त किया। वहीं मेटाडोंगरी से वापसी के बाद शशांक तिवारी ने बताया कि इस पहुंचविहीन नक्सल प्रभावित गांव में इनके सहयोग के बिना इस तरह की कैम्पिंग करना सम्भव नही था।