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चंद्रयान-2 सफल रहा प्रक्षेपण, चाँद की अनदेखी सतह

चंद्रयान-2 का सफल प्रक्षेपण भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन यानी इसरो की श्रेष्ठता पर मुहर लगाने के साथ ही यह भी रेखांकित कर रहा है कि उसके लिए अंतरिक्ष की चुनौतियों से पार पाना अब कहीं अधिक आसान हो गया है।

यह इसरो की काबिलियत का ही प्रमाण है कि उसके वैज्ञानिकों ने उन तकनीकी खामियों को बहुत जल्द दूर कर लिया जिनके चलते इस अंतरिक्ष अभियान को कुछ दिनों के लिए टाल दिया गया था। चूंकि इसरो चंद्रयान-1 अभियान को सफलतापूर्वक अंजाम दे चुका था इसलिए यह भरोसा बढ़ गया था कि चंद्रयान-2 भी कामयाब रहेगा। आखिरकार ऐसा ही हुआ।

चंद्रमा का दक्षिणी ध्रुव

दैनिक जागरण में पब्लिश एक लेख के अनुसा र, अब इंतजार है उस दिन का है जब सितंबर के पहले सप्ताह में हमारा यान चंद्रमा की उस सतह पर पहुंचेगा जहां आज तक कोई नहीं पहुंचा। चंद्रमा का दक्षिणी ध्रुव न केवल दुनिया से अपरिचित है, बल्कि काफी जटिल भी है।

माना जाता है कि चंद्रमा के इस हिस्से में पानी के साथ खनिज भंडार भी हो सकते हैैं। इसी कारण भारत के इस अंतरिक्ष अभियान पर दुनिया की निगाहें हैैं। निगाहें इस उत्सुकता की वजह से भी हैैं कि आखिर इसरो के वैज्ञानिक कहीं कम कीमत में अपने अंतरिक्ष अभियान को सफलतापूर्वक कैसे पूरा कर लेते हैैं?

अब इसमें कोई संदेह नहीं कि भारत अंतरिक्ष की एक बड़ी शक्ति के रूप में उभर आया है। इसका प्रमाण मंगलयान की सफलता ने भी दिया था और फिर अभी हाल में एंटी सैटेलाइट तकनीक के सफल परीक्षण ने भी। अब इसके प्रति सुनिश्चित हुआ जा सकता है कि इसरो के वैज्ञानिक वह सब कुछ हासिल करने में सक्षम होंगे जिसे अंतरिक्ष की चुनौतियों के रूप में देखा जाता है।

तकनीकी संस्थान क्यों नहीं लिख पा रहे हैैं?

इसरो की ओर से अर्जित सफलताएं हर भारतीय को गौरवान्वित कराने वाली हैैं। देशवासियों को रह-रहकर गौरव भरे क्षण उपलब्ध कराने वाले इसरो के वैज्ञानिक बधाई के पात्र हैैं। यह स्वाभाविक है कि उन्हें चारों ओर से बधाई और प्रोत्साहन मिल रहा है, लेकिन यह सही समय है जब इस पर विचार किया जाए कि आखिर सफलता जैसी गाथा इसरो लिखने में सक्षम है वैसी ही अन्य वैज्ञानिक, तकनीकी संस्थान क्यों नहीं लिख पा रहे हैैं? इस पर विचार इसलिए किया जाना चाहिए, क्योंकि रक्षा सामग्री के निर्माण के मामले में हम आत्मनिर्भर नहीं हो पा रहे हैैं।

यह अच्छी स्थिति नहीं कि भारत दुनिया के सबसे बड़े हथियार आयातक देश के रूप में जाना जाए? समस्या केवल यही नहीं कि हम उन्नत किस्म के लड़ाकू विमान, पनडुब्बियां आदि नहीं बना पा रहे हैैं, बल्कि यह भी है कि सेना की जरूरत पूरी कर सकने लायक छोटे हथियार भी नहीं बना पा रहे हैैं। केवल इतना ही नहीं, विभिन्न क्षेत्रों में काम आने वाली तमाम मशीनों के लिए भी हम दूसरे देशों पर निर्भर हैैं।

हमारे नीति-नियंताओं को यह ध्यान रखना चाहिए कि विभिन्न क्षेत्रों में आत्मनिर्भर बनकर ही भारत को विकसित देश बनाया जा सकता है। बेहतर होगा कि इसरो का गुणगान करते हुए हमारे नीति-नियंता उन कारणों पर भी ध्यान दें जिनके चलते अन्य तकनीकी संस्थान अपेक्षाओं पर खरे नहीं उतर पा रहे हैैं या फिर धीमी गति से बढ़ रहे हैैं।

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