बस्तर की जीवनदायिनी इन्द्रावती का सूखना जनजीवन के लिये ख़तरे की घंटी – बसंत ताटी
बीजापुर. बस्तर की जीवनदायिनी नदी इन्द्रावती के निरन्तर सूखते जाने के कारण क्षेत्र में भयावह जलसंकट उत्पन्न होने की स्थिति बनती जा रही है।नदी के सूख जाने से इस क्षेत्र में जलस्तर काफी नीचे चला गया है,जिससे कुएँ, तालाब और ट्यूबवेल में भी पानी कम होता जा रहा है। इस विषम स्थिति से न केवल ग्रामीण पेयजल के लिये चिंतिंत हो उठे हैं,बल्कि पालतू पशुओं के साथ-साथ वन्यप्राणियों पर भी प्राणों का संकट मँडराने लगा है।अभी हाल ही में प्यास बुझाने के लिये भटकता एक जंगली हिरण भैरमगढ़ विकासखंड के कुटरू में किसी के बाथरूम में मृत पाया गया।यह घटना भी आसन्न संकट की ओर इशारा करती है।
यह स्थिति केवल बीजापुर ज़िले की नहीं है।पूरे बस्तर संभाग में इन दिनों गंभीर जलसंकट का अनुभव किया जा रहा है।इसी समस्या को ध्यान में रखते हुए पिछले दिनों जगदलपुर के कुछ बुद्धजीवियों, सामाजिक संगठनों और कार्यकर्ताओं द्वारा ‘इंद्रावती बचाओ अभियान’ शुरू किया गया है।
ऐसा भी नहीं कि शासकीय स्तर पर इस समस्या के निराकरण की दिशा में कुछ सोचा न गया हो।जल संरक्षण और संवर्द्धन योजनाओं के नाम पर हर साल करोड़ों का आवंटन जारी होता है,लेकिन हर स्तर पर व्याप्त भ्रष्टाचार के कारण समस्या का समाधान कभी नहीं होता है।हार्वेस्टिंग के ज़रिये जलस्रोतों का जलस्तर बनाये रखने के कार्य तो होते रहते हैं,परंतु कुएँ और तालाब तो सूखते ही चले जा रहे हैं।ऐसे में सरकारी योजनाओं के क्रियान्वयन में ईमानदारी के प्रतिशत पर सवाल उठना लाजिमी है।
दरअसल बस्तर की जीवनरेखा मानी जाने वाली प्रमुख नदी इन्द्रावती के सूखने का एक बड़ा कारण जगदलपुर के निकट उड़ीसा की सीमा पर बहने वाला जोरा नाला बताया जाता है।यह नाला इन्द्रावती का बहुत सारा पानी लेकर शबरी नदी में जा मिलता है,जो उड़ीसा की ओर बहती है। इस तरह इन्द्रावती का पानी उड़ीसा की ओर डायवर्ट हो जाता है। इन्द्रावती से पानी हड़पने वाला जोरा नाला अब ख़ुद नदी का आकार लेता जा रहा है।अपना आधे से अधिक पानी जोरा नाला को लुटाकर दुखी इन्द्रावती लगातार दुबली होती हुई आगे बढ़ती है।
चित्रकोट जलप्रपात भी पानी के अभाव में अपना सौन्दर्य खो चुका है।वहाँ जाने वाले पर्यटक अब निराश होने लगे हैं,जिसका प्रभाव पर्यटन व्यवसाय पर पड़ा है।हालाँकि उद्गमस्थल कालाहांडी (उड़ीसा) से संगमस्थल भद्रकाली (छग) और सोमनूर (महाराष्ट्र) तक इन्द्रावती के पूरे प्रवाहपथ में उस पर केवल नवरंगपुर (उड़ीसा) में एक बाँध बना है,फिर जोरा नाले से पानी डायवर्ट होने के कारण बस्तर की ओर आने वाला पानी उड़ीसा लौट जाता है।
तत्कालीन मध्यप्रदेश सरकार द्वारा इन्द्रावती का पानी जोरा नाले में जाने से रोकने का प्रयास किये जाने पर दोनों राज्यों में जल बँटवारे को लेकर विवाद उत्पन्न हुआ था।इसी के चलते सन् 1975 में दोनों राज्यों ने जल बँटवारा से सम्बंधित एक समझौता किया था,परंतु उड़ीसा द्वारा उस पर अमल नहीं किया गया,जिससे इन्द्रावती का अस्तित्व संकट में आ गया।
इन्द्रावती पर संपूर्ण बस्तर का जनजीवन निर्भर है।यदि यह नदी दिनोंदिन यूँ ही सूखती चली गयी तो वह दिन दूर नहीं, जब यह सरस्वती की तरह लुप्त हो जायेगी और आने वाली पीढ़ी इसे लुप्त या गुप्त इन्द्रावती के नाम याद करेगी।अब छत्तीसगढ़ सरकार को इस नदी के संरक्षण और संवर्द्धन के लिये कोई ठोस और कारगर क़दम उठाना चाहिए।ज़रूरत पड़े उड़ीसा सरकार से बातचीत भी की जानी चाहिए।अब और प्रतीक्षा का समय नहीं है।रास्ता तो निकालना ही होगा,वरना परिस्थिति किस करवट बैठेगी कौन जनता है।