बिलासपुर । यहां के बापा छात्रावास में वनवासी बच्चों (Forest children) से बनवाया जाता है खाना। और खाना बनाने वाला रसोइया (the Cook) करता है मौज। हॉस्टल के अधीक्षक अक्सर रहते हैं नदारद। पढने आए बच्चों को ऐसा करते देखकर तो हर कोई यही कहेगा न कि बाप रे बाप ये है बापा छात्रावास (Bapa Hostel)। जी हां जिले के कोटा विकासखंड के करगीखुर्द गांव में वनवासी सेवा मंडल की ओर से चलने वाले बापा छात्रावास में वनवासी बच्चे (Forest children) खुद ही चावल चुनते हैं और खाना भी पकाते हैं। तो वहीं इस छ़ात्रावास का कुल मासिक खर्च तकरीबन 75 हजार रुपए बताया जा रहा है। रसोइए (the Cook) को मिलता है 9 हजार रुपए महीना वेतन, मगर खाना नहीं बनाता। सवाल तो ये भी उठता है कि ये गरीब बच्चे यहां पढाई करने आए हैं या मजदूरी करने।
यहां रहते हैं 6वीं से 8वीं तक के आदिवासी बच्चे
इस हॉस्टल में 6वीं से 8वीं तक के आदिवासी बच्चे रहते हैं। जो अपने अपने घरों से अपने माता पिता का सपना पूरा करने के लिए पढाई कर रहे हैं। ऐसे में उन गरीब और अनपढ माता पिता को क्या पता कि हॉस्टल में उनके बच्चों से क्या करवाया जा रहा है। इन बच्चों को अगर ऐसे ही कामों में उलझाए रखा गया तो इनकी पढाई का क्या होगा।
बाल श्रम करवाना अपराध
वैसे तो बाल श्रम करवाना कानूनन अपराध है मगर यहां तो धड़ल्ले से इसको करवाया जा रहा है। छत्तीसगढ में बाल श्रम के मामले अक्सर ही सामने आते रहते हैं। कुछ साल पहले ही एक प्राइमरी शाला के हेडमास्टर साहब अपने खेत में बच्चों से धान का रोपा लगवा रहे थे। किसी ने वीडियो बनाकर सोशल साइट्स पर डाल दिया तो फंस गए।
कार्रवाई का भरोसा दे रहे सहायक संचालक
मामले के सामने आने के बाद विभाग के सहायक संचालक सीएल जायसवाल इसकी जांच करवा कर कार्रवाई करने का भरोसा दे रहे हैं। ऐसे में सवाल तो यही उठता है कि जब सरकार इन गरीबों की शिक्षा के लिए दे रही है पैसे तो कर्मचारी अपनी ड्यूटी पूरी नहीं कर रहे हैं कैसे। अब देखना ये होगा कि इस मामले को लेकर विभाग क्या कार्रवाई करता है।