
सरगुजा/उदयपुर/रोमी सिद्दीकी। हसदेव अरण्य क्षेत्र के ग्राम फतेहपुर, साल्ही हरिहरपुर के ग्रामीण आदिवासियों ने परसा कोल ब्लॉक हेतु जबरन भूमि अधिग्रहण एवं फर्जी ग्रामसभा प्रस्ताव को निरस्त करने की मांगों पर पुनः अनिश्चितकालीन धरना प्रदर्शन 2 मार्च 2022 से शुरू किया है। वर्ष 2019 -20 में भी फर्जी ग्रामसभा प्रस्ताव निरस्त कर प्रस्तावित परसा कोयला खनन परियोजना को निरस्त करने की मांग को लेकर में ग्राम फतेहपुर में 70 दिनों तक अनिश्चतकालीन धरना ग्रामीणों ने किया था.
गौरतलब है कि अक्टूबर 2021 में हसदेव अरण्य के सैकड़ो आदिवासी 300 किलोमटर तक पदयात्रा करके रायपुर पहुचे थे. राज्यपाल ने पदयात्रियों से मुलाकात के बाद परसा कोल ब्लॉक के प्रभावित गाँव के फर्जी ग्रामसभा प्रस्ताव की जांच के आदेश मुख्य सचिव को दिया गया था लेकिन आज चार माह के बाद भी कोई कार्यवाही नही हुई. इसलिए प्रभावित गाँव के आदिवासी महिला पुरुष पुनः आन्दोलन के लिए बाध्य हुए. ग्राम हरिहरपुर में ही अनिश्चितकालीन धरना प्रदर्शन शुरू किया गया है.
इसमें प्रदेश भर के आदिवासी समाज के मुखिया सहित देशभर के जनवादी संघर्षो से जुड़े साथियों को आमंत्रित किया जायेगा. परसा कोल ब्लॉक राजस्थान राज्य विधुत निगम लिमिटेड को आवंटित हुआ जिसे विकसित करने और खनन करने का MDO अनुबंध अडानी कंपनी को दिया गया है. इस कोल ब्लाक की भूमि अधिग्रहण कोल बेयरिंग एक्ट 1957 के तहत किया गया है वह भी पांचवी अनुसूचित क्षेत्र की ग्रामसभाओं की सहमती लिए बिना. जंगल जमीन की वन स्वीकृति के लिए वनाधिकार मान्यता कानून के तहत वनाधिकार के दावों की प्रक्रिया की समाप्ति होने के पूर्व ही तथा ग्रामसभा के फर्जी प्रस्ताव के आधार पर सरगुजा कलेक्टर के द्वारा वर्ष 2018 में NOC जारी की गई थी. कम्पनी और प्रशासन की मिलीभगत से तैयार ग्रामसभा के फर्जी प्रस्ताव की जाँच और कार्यवाही तथा भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया निरस्त करने समस्त ग्रामीण आदिवासी आन्दोलनरत हैं. परसा कोल ब्लॉक के बगल में ही स्थित परसा ईस्ट केते बासेन (PKEB) कोल खनन परियोजना संचालित है जिससे राजस्थान को 15 मिलियन टन कोयला प्रतिवर्ष जा रहा है वाबजूद इसके मुख्यमंत्री अशोक गहलोत कोयला संकट का माहोल बनाकर इस नए कोल ब्लॉक में खनन करना चाहते है.
कोयला संकट का माहोल बनाकर राजस्थान की सरकार हसदेव अरण्य क्षेत्र के हमारे मूल सवालों को कुचलना चाहता है जो आज सिर्फ छत्तीसगढ़ ही नही बल्कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर उठाए जा रहा हैं l हसदेव अरण्य के आदिवासियों की आजीविका, संस्कृति, रीती रिवाज और अस्तित्व, समृद्ध वन सम्पदा और उसकी जैव विविधता, वन्य प्राणियों के रहवास, जीवनदायनी हसदेव नदी और सम्पूर्ण पर्यावरण का विनाश के सवालों को अडानी के मुनाफे के सामने दफ़न करने की कोशिशों के तहत यह माहोल बनाया जा रहा है. हसदेव अरण्य के आदिवासी इस लूट के खिलाफ और अपने जंगल, जमीन, पर्यावरण को बचाने के लिए न सिर्फ एकजुट है बल्कि किसी भी कीमत पर इसका विनाश होने नही देंगे.
ग्रामीणों ने यह भी आरोप लगाया है कि केंद्र एवं राज्य सरकार वैश्विक स्तर पर पर्यावरण को बचाने के लिए अपने आप को सर्वश्रेष्ठ साबित करने की दौड़ में शामिल हैं परंतु अपने हजारों साल पुराने सघन वन क्षेत्रों को उजाड़ने के लिए कोयला खदान की सहमति दे रहे हैं जो कि सर्वथा अनुचित है।
जीवनदायिनी नदियों का अस्तित्व संकट में
इस क्षेत्र के जंगल के उजड़ जाने से कई नदियों और नालों इनमें शामिल साल्ही नाला, चोरनई, अटेम नदी मुख्य रूप से शामिल है जोकि आज ग्रामीणों और उनके मवेशियों के लिए जीवनदायिनी का काम करती है उनका अस्तित्व खतरे में आएगा। गर्मी बेतहाशा बढ़ेगी जंगल आधारित आजीविका समाप्त होंगे और सबसे बड़ी बात मानव हाथी द्वंद भी जारी है। जंगल इसी तरह बेतहाशा करते रहे तो अन्य जानवरों के साथ भी मनुष्य को संघर्ष करना पड़ेगा और जान गवा कर इसकी कीमत चुकानी पड़ेगी जिस ओर भी शासन-प्रशासन को ध्यान दिए जाने की आवश्यकता है। केवल हाथी प्रभावित क्षेत्र या वन्यजीव रहवास क्षेत्र बोर्ड पर लिख देने से कुछ नहीं होता।
आंदोलन में शामिल हसदेव अरण्य बचाओ संघर्ष समिति के उमेश्वर सिंह अर्मो, ठाकुर राम ओरकेरा, सुनीता पोर्ते , रामलाल करियाम, मुनेश्वर सिंह पोर्ते ने चर्चा के दौरान कहा कि हमारी मांगों को नहीं सुना जाता है फर्जी प्रस्ताव को रद्द कर कोल खदान अगर बंद नहीं किया जाता है तो हम समाज के लोगों को साथ लेकर नेशनल हाईवे में चक्का जाम करने को विवश होंगे जिसकी समस्त जवाबदारी शासन प्रशासन की होगी।