हसदेव अरण्य को बचाने के लिए आदिवासियों का जत्था पहुंचा रतनपुर, 13 अक्टूबर को रायपुर पहुंचेगी पदयात्रा
सरगुजा। हसदेव अरण्य को बचाने के लिए सरगुजा से निकले सैकड़ों आदिवासियों का जत्था रतनपुर पहुंचा। 4 अक्टूबर से यह पदयात्रा सरगुजा से निकला हैं और 13 अक्टूबर को रायपुर पहुंच कर राज्यपाल और मुख्यमंत्री को ज्ञापन सौंपेंगे। जल, जंगल जमीन को बचाने के लिए आदिवासी संघर्ष कर रहें हैं। राहुल गांधी ने भी हसदेव अरण्य को बचाने की बात कही थी। लेकिन आज कांग्रेस और भाजपा दोनों ही इन आदिवासियों की आवाज अनसुनी कर दी है।
हसदेव अरण्य उत्तरी कोरबा, दक्षिणी सरगुजा व सूरजपुर जिले में स्थित एक विशाल व समृद्ध वन क्षेत्र है। जो जैव विविधता से परिपूर्ण हसदेव नदी और उस पर बने मिनीमाता बांगो बांध का केचमेंट है जो जांजगीर-चाम्पा, कोरबा, बिलासपुर के नागरिकों और खेतो की प्यास बुझाता है। यह हाथी जैसे महत्वपूर्ण वन्य प्राणियों का रहवास और उनके आवाजाही के रास्ते का भी वन क्षेत्र है। साल 2010 में खुद केन्द्रीय वन पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने सम्पूर्ण हसदेव अरण्य क्षेत्र में खनन को प्रतिबंधित रखते हुए इस पूरे जंगल को ‘नो-गो क्षेत्र घोषित किया था। कार्पोरेट के दबाव में इसी मंत्रालय ने वन सलाहकार समिति के द्वारा खनन को अनुमति नहीं देने के निर्णय से विपरीत जाकर परसा ईस्ट एवं केते बासन कोयला खनन परियोजना को वन स्वीकृति दी थी जिसे वर्ष 2014 में माननीय ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) ने निरस्त भी कर दिया था। अर्थात् मात्र 750 हेक्टेयर में खनन सुप्रीम कोर्ट के स्टे पर जारी है, वर्तमान में इस परियोजना की कानूनन वन स्वीकृति तक नहीं है। पेसा कानून 1996 का पालन करो। यह इनकी मुख्य मांगे हैं जो कि सैकड़ों की संख्या में आदिवासी किसान मजदूर हसदेव नदी जंगल और पर्यावरण को बचाने अपने आरजीवी की संस्कृति और अस्तित्व को बचाने के लिए पदयात्रा कर रहे हैं।