देश को बदल कर रख देगा पीएम मोदी का यह प्लान, सरकारी तौर-तरीकों को बाय बाय
नई दिल्ली. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने दूसरे कार्यकाल में साफ कर दिया है कि अब सरकारी योजनाएं परंपरागत तौर-तरीकों से पूरी नहीं होंगी। सार्वजनिक क्षेत्र में निजी प्रबंधन के फार्मूले लागू होंगे। इसके लिए अमेरिका, ब्रिटेन, संयुक्त अरब अमीरात और चीन जैसे देशों के विकास अनुभव लेकर आगे बढ़ा जाएगा। सरकारी योजनाओं में प्रोजेक्ट का टेंडर जारी होने से लेकर उसके पूरा होने तक, इन सभी प्रक्रियाओं में निजी कंपनियों के तरीके इस्तेमाल होंगे।
रेलवे, निर्माण, आईटी, सड़क परिवहन, पावर, कोल सेक्टर, हेल्थ, शहरी विकास, संचार, माइंस, सिविल एविएशन, डिफेंस और हैवी इंडस्ट्री आदि क्षेत्रों में रियल टाइम कम्युनिकेशन और रियल टाइम डाटा मैनेजमेंट जैसी बातों के पालन कर किसी भी काम को तय समय से पहले और निर्धारित राशि से कम खर्च में पूरा किया जाएगा। शनिवार को हुई नीति आयोग की पांचवीं बैठक में यह प्रोजेक्ट रिपोर्ट सभी राज्यों को सौंपी गई है।
इसमें पीएम मोदी की ओर से कहा गया है कि सरकारी योजनाओं के तय समय पर पूरा न होने के पीछे एक बड़ा कारण उसके प्रबंधन और क्रियान्वयन के तौर-तरीकों में बदलाव नहीं होना है। देखने में आया है कि आज भी अधिकांश सरकारी महकमे पुराने तरीकों पर ही अपना कामकाज करते हैं। चाहे वह निर्माण का क्षेत्र को या आईटी प्रोजेक्ट, निर्धारित समय पर पूरा नहीं हो पाते। रिपोर्ट के मुताबिक, इससे सम्बंधित प्रोजेक्ट का खर्च बहुत अधिक बढ़ जाता है।
मौजूदा समय में इस तरह पूरे होते हैं प्रोजेक्ट, खूब होती है लेट-लतीफी
देश में अगर निर्माण क्षेत्र की बात करें तो इसमें सबसे ज्यादा समय लगता है। जैसे, सबसे पहले एक रिपोर्ट तैयार होती है, जिसमें तय खर्च (अधिकतम सीमा) में काम पूरा होने की बात कही जाती है। इसके बाद डीपीआर बनती है। इन सब कार्यों में इतना ज़्यादा फाइल वर्क होता है कि प्रोजेक्ट शुरू होने में ही दो-तीन साल का विलम्ब हो जाता है। आर्किटेक्ट नियुक्त होने के बाद जो बिड डॉक्युमेंट बनता है, उस पर इंजीनियर अपनी राय देता है। वह कई बार रिपोर्ट को ही गलत ठहरा देता है।
जब ठेकेदार को फाइनल रिपोर्ट मिलती है तो काम शुरू होता है। बीच में कभी जांच तो कभी पेमेंट का इश्यू आ जाता है, इससे काम तय समय पर पूरा नहीं हो पाता। इसमें पावर इश्यू, पब्लिक प्रॉपर्टी है या प्राइवेट, जैसे मामले बाधा बनकर सामने आ जाते हैं। ऐसे मामलों में कई बार कोर्ट स्टे ले लिया जाता है। ये सब बातें न केवल प्रोजेक्ट पूरा होने की तिथि को आगे बढ़ा देती हैं, बल्कि धन भी कई गुणा ज्यादा खर्च करना पड़ता है।
मिनिस्ट्री ऑफ स्टेटिस्टिक्स एंड प्रोग्राम इम्प्लमेंटेशन (एमओएसपीआई) की दिसम्बर-2018 में जारी रिपोर्ट के मुताबिक
-अप्रैल 2014 में 727 में से 282 सरकारी प्रोजेक्ट देरी से पूरे हुए थे
-दिसम्बर 2018 के दौरान 1424 में से 384 प्रोजेक्ट पूरे होने में विलम्ब हुआ।
-इस विलम्ब की अहम वजह प्रोजेक्ट प्रबंधन की कमियां रहीं। पारम्परिक तौर-तरीकों के चलते ये प्रोजेक्ट देरी से पूरे हुए। नतीजा, सरकार को भारी आर्थिक चपत लगी।
-रोड ट्रांसपोर्ट एंड हाइवे के 605 प्रोजेक्ट में से 112 देरी से पूरे हुए
-पावर क्षेत्र के 95 में से 56 प्रोजेक्ट पूरे होने में विलम्ब हुआ
-शहरी विकास के 58 में से 23 प्रोजेक्ट लेट हो गए
-रेलवे के 367 में से 94 प्रोजेक्ट पूरे होने में देरी हुई
सरकारी विभागों के काम करने का तौर तरीका अब बदल जाएगा
इसके लिए मोदी सरकार ने एक विस्तृत योजना बनाई है। प्रोजेक्ट मैनेजमेंट को सीनियर सेकेण्डरी स्तर पर पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाया जाएगा। स्नातक स्तर पर इसका पूर्ण कोर्स भी शुरू होगा। डिप्लोमा प्रोग्राम भी प्रारम्भ किया जा रहा है। पीजी कोर्स के लिए यूजीसी और एआईसीटीई से राय ली गई है। इसमें अंतरराष्ट्रीय मानदंडों के आधार पर प्रोजेक्ट मैनेजमेंट के कोर्स रहेंगे।
फिलहाल सभी सरकारी एवं प्राइवेट विभागों में प्रोजेक्ट मैनेजमेंट योजना लागू की जा रही है। इसके लिए रेफ्रेशेर कोर्स शुरू होंगे। इसके दायरे में सभी सरकारी विभाग, निगम और बोर्ड आएंगे। ऐसी व्यवस्था की जा रही है कि सभी विभागों को उनके परिसर में ही प्रोजेक्ट मैनेजमेंट का प्रशिक्षण दे दिया जाए। अगर किसी प्रोजेक्ट को जल्द शुरू करना है तो उसके लिए अलग से मापदंड तैयार होंगे। इस कार्य में क्वालिटी कंट्रोल ऑफ इंडिया की मदद ली जाएगी। नेशनल प्रोजेक्ट-प्रोजेक्ट मैनेजमेंट पॉलिसी फ़्रेमवर्क के तहत ये सभी योजनायें पूरी होंगी।