अंतरिक्ष इतिहास में भारत को जगह दिलाने वाले दो महान वैज्ञानिकों की कहानी

15 अगस्त 2019 को भारत की अंतरिक्ष एजेंसी इसरो को 50 साल पूरे हो रहे हैं। इसी दिन भारत अपनी आजादी का 73 वां जश्न भी मनाएगा। भारतीय अनुसंधान संगठन (इसरो) की शुरुआत 15 अगस्त 1969 के दिन, अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में शोध को बढ़ावा देने के मकसद से हुई। इसका मुख्यालय बेंगलुरु में है। भारत में स्पेस प्रोग्राम (अंतरिक्ष कार्यक्रम) के जनक डॉक्टर विक्रम ए साराभाई थे लेकिन अंतरिक्ष विज्ञान में शोध को नई दिशा देने का श्रेय महान वैज्ञानिक सतीश धवन को जाता है।
इन दोनों ही वैज्ञानिकों ने अंतरिक्ष इतिहास में भारत को खास जगह दिलाई। विक्रम ए साराभाई और सतीश धवन, दोनों ही भारत के महान रॉकेट साइंटिस्ट थे जिनके प्रयोसों की बदौलत ही इसरो आज ‘नासा’ के बाद स्पेस साइंस के क्षेत्र में सबसे बड़ी और विश्वसनीय एजेंसी है। जिसकी कामयाबी का लोहा दुनियाभर के देश मानते हैं। हाल ही में 22 जुलाई 2019 को चंद्रयान-2 को चांद पर भेजकर इसरो ने एक बार फिर इतिहास रचा है। इसरो का काम स्पेस टेक्नोलॉजी का विकास और राष्ट्र की जरूरत के हिसाब से वैज्ञानिक कार्यों को अंजाम देना है।
यह इसरो ही है जिसने 19 अप्रैल 1975 को भारत के पहले सैटेलाइट आर्यभट्ट के प्रक्षेपण के जरिए इतिहास रचा और दुनियाभर के देशों को सकते में डालकर अंतरिक्ष के क्षेत्र में पहला कदम बढ़ाया। 5 साल बाद इसरो ने रोहिणी सैटेलाइट को धरती की कक्षा पर स्थापित कर एक और कमाल किया। यह पहला भारतीय सैटेलाइट था जो कि धरती की कक्षा में स्थापित हुआ और पूरी दुनिया गवाह बनी।
इसरो ने लगातार अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में शोध और वैज्ञानिक कार्यों को अंजाम देकर भारत को अमेरिका, रूस और चीन की कतार में अग्रणीय खड़ा किया। 2019 भी इसरो की एक और कामयाबी का गवाह बना। अगर विक्रम साराभाई और सतीश धवन जैसे महान वैज्ञानिक नहीं होते तो इसरो भी नहीं होता। जब इसरो अपने 50 साल का जश्न मना रहा होगा तो ये दो महान वैज्ञानिक, पूरी शिद्दत और ईमानदारी से याद किए जाएंगे।आइए इसरो के जनक और इसरो की दिशा बदलने वाले भारत के दो महान भारतीय विक्रम साराभाई और सतीश धवन के बारे में जानते हैं।