उत्साहित कामधेनु आयोग ‘गाय’ पर करा रहा राष्ट्रीय परीक्षा, आयुर्वेद से 800 कोरोना मरीज ठीक
कथीरिया ने कहा कि कामधेनु आयोग क्लीनिकल ट्रायल में भागीदार था। जल्द ही आयोग इस डाटा को आयुष मंत्रालय को सौंपने जा रहा है। उपचार की खुराक में "पंचगव्य" (गोमूत्र, गाय का गोबर, दूध, घी और दही का मिश्रण) और आयुर्वेद की संजीवनी बूटी और काढ़ा आदि शामिल थे। कथीरिया ने कहा कि परीक्षण आयुष मंत्रालय के मानदंडों के अनुसार किए गए।
Cow Science: राष्ट्रीय कामधेनु आयोग (Rashtriya Kamdhenu Aayog) ने गाय पर आधारित विज्ञान को बढ़ावा देने के लिए कामधेनु आयोग राष्ट्रीय स्तर पर एक परीक्षा आयोजित करने जा रहा है, जिसमें आपके गाय से संबंधित ज्ञान को परखा जाएगा। आयोग के अध्यक्ष वल्लभभाई कथीरिया ने कहा कि गाय की उपयोगिता के प्रचार-प्रसार पर काम कर रहा है। कथीरिया ने बताया कि गाय केवल दूध देने वाली पशु ही नहीं है बल्कि चार पैरों पर चलता-फिरता एक पूरा विज्ञान है। कथीरिया ने दावा किया है कि गाय केंद्र सरकार के 5 ट्रिनियल इकोनॉमिक के सपने को पूरा करने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकती है। राष्ट्रीय कामधेनु आयोग के मुताबिक गो विज्ञान का प्रचार-प्रसार करने के उद्देश्य से राष्ट्रीय स्तर पर गाय से संबंधित ज्ञान-विज्ञान पर एक परीक्षा का आयोजन 25 फरवरी, 2021 को होगा। ऑनलाइन होने वाली इस परीक्षा में गाय से जुड़े 100 प्रश्न पूछे जाएंगे। ये सवाल हिंदी और अंग्रेजी समेत 12 स्थानीय भाषाओं में पूछे जाएंगे।
राष्ट्रीय कामधेनु आयोग (RKA) के अध्यक्ष वल्लभभाई कथीरिया के मुताबिक देश के 4 शहरों में किए गए क्लीनिकल परीक्षण में पंचगव्य और आयुर्वेदिक उपचार से कोरोना से पीड़ित 800 मरीजों को ठीक किया गया। कथीरिया ने “गऊ विज्ञान” पर अगले महीने आयोजित होने वाली पहली राष्ट्रीय परीक्षा की घोषणा करते हुए कहा कि जून और अक्टूबर 2020 के बीच राज्य सरकारों और कुछ गैर सरकारी संगठनों (एनजीओ) के सहयोग से राजकोट और बड़ौदा (गुजरात), वाराणसी (उप्र) और कल्याण (महाराष्ट्र) में 200-200 मरीजों पर क्लीनिकल ट्रायल किए गए थे। गौरतलब है कि राष्ट्रीय कामधेनु आयोग का गठन केंद्र सरकार द्वारा फरवरी, 2019 किया गया था।
कथीरिया ने कहा कि कामधेनु आयोग क्लीनिकल ट्रायल में भागीदार था। जल्द ही आयोग इस डाटा को आयुष मंत्रालय को सौंपने जा रहा है। उपचार की खुराक में “पंचगव्य” (गोमूत्र, गाय का गोबर, दूध, घी और दही का मिश्रण) और आयुर्वेद की संजीवनी बूटी और काढ़ा आदि शामिल थे। कथीरिया ने कहा कि परीक्षण आयुष मंत्रालय के मानदंडों के अनुसार किए गए।
इस क्लीनिकल ट्रायल में कोरोना संक्रमित लोग अपनी इच्छा से टेस्ट में शामिल हुए और जरूरी दस्तावेजों पर हस्ताक्षर किए। उन्हें संबंधित स्थानों पर मेडिकल कॉलेजों में भर्ती कराया गया, जहां परीक्षण किए गए। कथीरिया ने कहा कि एलौपैथी दवा उद्योग की एक लॉबी है, जो इस तरह के उपचारों को स्वीकार नहीं करती। लेकिन एक दो साल में वह भी इन्हें स्वीकार कर लेगी। यह पूछे जाने पर कि क्या ठीक हुए किसी मरीज को वैक्सीन लेने की जरूरत नहीं है, उन्होंने कहा कि इन मरीजों में एंटीबाडी होने से जरूरत नहीं है। लेकिन यदि कोई वैक्सीन लेना चाहे तो ले सकता है।